"आखिरी हिचकी"


(चित्रः इंटरनेट से साभार)

" बहुत थक गए हो? आओ बैठो, थोड़ा आराम कर लो"

"हाँ , बहुत थक गया हूँ। साँस अब फूलती नही, बल्कि बहुत मुश्किल से आती है। शरीर सुन्न पड़ता जा रहा है। पानी मिलेगा?"

"हाँ, बैठो। पानी लाती हूँ"

"कितना कठिन रहा है ये सफर, उस रोज से आज तक, जब तुम से मिला था।"


"अरे छोड़ो ना, लो पानी पियो। एक अरसे बाद आए हो। इतने निराश और हताश। ये वो इंसान नही है जिसके लिए मैंने इतने रोज इंतजार की भट्टी पर आँखों को जलाया है"

"हताशा मेरा शौक तो ना था अंजलि। वक्त ने सब कुछ छीन लिया। एक हारी हुई लड़ाई लड़ते बहुत थक चुका हूँ। काश मेरे जन्म के पहले मुझे मजहब जाति चुनने की आजादी होती। वो ना भी होती तो काश...काश मुझे जन्म लेने या ना लेने का विकल्प ही दे दिया गया होता।"

 "जिंदगी बीते हुए वक्त पर झुँझलाने की कथा नही है ना, तुम खुद से झूठ बोल रहे हो। तुम जन्म भी चाहते थे और प्रेम भी। ये भी सच रहा होगा"

"झुँझलाहट बेबसी से पैदा होती है"

"तुम लाचार भी हो और कमजोर भी। ये तुमसे ना होगा कि लड़ाई को जीत या हार तक ले जा सको। बीच में छोड़ के जा रहे हो?।"

"हाँ ये सच है। तुमने एक बेहद कमजोर इंसान से प्रेम किया। मैंने उस कमजोर इंसान को मारने के बजाय पाल पोस कर बड़ा किया। वो बस छद्मयुद्ध लड़ता रहा। वीरता की कहानियाँ गढ़ता रहा । खुद ही खुद से वीरता का बखान करता रहा। इसे एक दिन हार जाना था। वो जीतने लायक था ही कब?।"

"मेरा वो मतलब नही था। तुम नाहक ही इतना घबराते हो। अभी तो अंजाम का वक्त भी न आया, अभी से इतना डर।"

"सच को स्वीकारना घबराना नही है, ये वक्त का तकाजा है। कमजोर को मरना होगा, उसके लिए दस्तूर नहीं बदले जाते।"

" तो जाओ। आखिरी साँस से पहले जो कंपन आए ना, मेरा नाम ले लेना।"

"हाँ अगर हिचकियाँ याद से आती हैं, तो जल्दी ही तुम भी जान जाओगी। अच्छा, अब चलता हूँ। मैं कमजोर नही दिखना चाहता, लेकिन मैं हूँ।"

#आखिरी_हिचकी
#एक_प्रेत_का_कुबूलनामा।

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