" उसने हाथ उठाया, अपने सिर को एक टोकरी की तरह खोला और ...

" उसने हाथ उठाया, अपने सिर को एक टोकरी की तरह खोला और उसमें से सड़े गले मांस का लोथड़ा निकाल कर मेज पर रख दिया। ये उसका दिमाग था, कुछ हिस्सा गला हुआ और कुछ बेतरह जला हुआ। इस कदर बेरंग कि मक्खियों तक ने उसमें कोई रुचि नहीं दिखाई। ये उसका रोज का काम था। वो जब भी थका हारा वापस आता, यूँ ही अपने दिमाग को खोल कर रख देता था। इससे उठती आवाजों का शोर धीरे धीरे पूरे कमरे में फैल जाता, दिमाग का एक एक खयाल दीवारों पर पर्दे की तरह फैल जाता। और वो खुद एक जगह पर बैठ कर ये सब निहारता रहता। एक दीवार पर उसकी बेचैनियों के किस्से नुमायाँ होते... जिनसे वो चाह कर भी पार नही पा सकता था। जो जो उस दिमाग के अंदर होता वो मेज से उठ उठ कर कमरे में इधर उधर फैलने लगता। हर खयाल अपने लिए जगह तलाशने लगता। उसका खाली कमरा हरा भरा हो जाता.... एक प्रेमिका जिसकी उम्मीदों को उसने कभी पूरा करने की कोशिश नहीं की। वो अपनी हर अधूरी ख्वाहिश के साथ उसके पास अपने सवालों का जवाब माँगती। एक जलती चिता में चटकती लकड़ियों की आवाज उसके दिमाग से निकल कर चारों ओर फैल जाती । वो लपटों से बचने के लिए एक कोने में दुबक जाता। कई सिरकटे मुर्दों का जुलूस जो कमरे में इधर से उधर चक्कर लगाते रहते । कमरे में रखे ग्लोब पर चेहरे उभर आते , वो कभी किसी सीरियन बच्चे की शकल तो कभी मेक्सिको की सीमा पर डूबे हुए बाप और बच्चे के चेहरे से मिलते जुलते खिलखिलाने लगते। पूरा कमरा एक असहनीय शोर से भर जाता। चीखें, ठहाकों की मिश्रित आवाजें धीरे धीरे सारे माहौल को डरावना बना देतीं और धीरे धीरे ही खामोश होते हुए गायब हो जातीं। सारे दृश्य एक एक करके वापस मेज पर रखे उस मांस के लोथड़े में समाने लगते और कमरा एक दुल्हन की विदाई के बाद की सी अजीब सी शांति और वीरानी में डूब जाता।"

#एक_प्रेत_का_कुबूलनामा



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