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Showing posts from September, 2020

ईश्वर के बजाय डार्विन पर भरोसा करने वाले भगत सिंह को ये देश स्वीकार कर सकता है क्या?

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भगत सिंह.... मैं तो नाम लेने में डरता हूँ। इसलिए नहीं कि उनकी तस्वीर को उनके विचारों पर ढँक दिया गया है, इसलिए कि उनकी फाँसी को सिर्फ नसें फड़काने का औजार बना दिया गया है, उनके विचारों के सामने आने का मतलब है वर्ग संघर्ष की एक जायज बहस की शुरुआत। और समय ऐसा है साहब कि हत्याएँ उचित हैं लेकिन बहस के लिए स्थान बचा ही नहीं है। भगत सिंह जब कहते हैं कि "धर्म के उपदेशकों और सत्ता के स्वामियों के गठबन्धन से ही जेल, फांसी, कोड़े और ये सिद्धान्त उपजते हैं", तो वह सबके निशाने पर होते हैं। अब सोचिए कि अगर भगत सिंह आज यह बोल दें, तो उन्ही के फोटो लगाकर उन्माद में अंधे लोग उनकी क्या हालत करेंगे। यही राजनीति है। वह सुविधानुसार अपने नायकों को इस्तेमाल करती है। भगत सिंह का सम्पूर्ण चिंतन साम्यवाद पर आधारित है। वह मार्क्स को मानते थे। हालांकि उन्होने लेनिन को सच्चे नेता के तौर पर  मान्यता दी जिन्होंने बोल्शेविक क्रांति को सफलता पूर्वक अंजाम दिया था। आज भगत सिंह होते तो उनके इन विचारों पर क्या प्रतिक्रिया होती, आप खुद अंदाजा लगाइए। एक सबसे महत्वपूर्ण बात.... भगत सिंह का मानना था क

"गिर्दा की वैचारिक विरासत का सिमट जाना"

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"गिर्दा की वैचारिक विरासत इस कदर कैसे सिमट गई"  एक बार सूबे के प्रसिद्ध रंगकर्मी बृजेनलाल साह जी ने कहा था कि " मेरी विरासत का वारिस गिर दा है" । गिर दा जिसके अंदर पहाड़ बसता था, रगों में भागीरथी, अलकनंदा, काली , सरयू बहती थी। जीते जागते पहाड़ पुरूष थे गिर दा। लेकिन ऐसा क्यूँ हुआ कि बृजेनलाल साह को तो वारिस मिल गया लेकिन गिर दा को समाज धीरे धीरे खा गया, उनके विचारों को उपेक्षित कर दिया गया। गिर दा की इतनी समृद्ध विरासत आखिर लावारिस क्यूँ रह गई? उत्तराखंड राज्य आंदोलन को याद किया जाए तो हम लोग जो उस वक्त होश सँभाल रहे होंगे, आज जब आंदोलन की कहानियाँ सुनते हैं और जब जब उसमें नैनीताल का जिक्र आता है तो अपने अपने आप एक छवि दिमाग में उतराने लगती है ... एक दुबला पतला शरीर जो बुढ़ापे से लड़ते हुए लाउडस्पीकर कंधे पर टाँग कर आंदोलन का बुलेटिन पढ़ रहा है या फिर वो अपना हुड़के की थाप पर मस्त जनगीत गा रहा है। यही छवि है जो गिरीश तिवाड़ी का आवरण तोड़कर गिर्दा बनती है। गिरीश तिवाड़ी पैदा होते रहते हैं लेकिन उनमें से गिर्दा होना साहस, संस्कृति और वैचारिक समृद्धि का उत्