ईश्वर के बजाय डार्विन पर भरोसा करने वाले भगत सिंह को ये देश स्वीकार कर सकता है क्या?

भगत सिंह.... मैं तो नाम लेने में डरता हूँ। इसलिए नहीं कि उनकी तस्वीर को उनके विचारों पर ढँक दिया गया है, इसलिए कि उनकी फाँसी को सिर्फ नसें फड़काने का औजार बना दिया गया है, उनके विचारों के सामने आने का मतलब है वर्ग संघर्ष की एक जायज बहस की शुरुआत। और समय ऐसा है साहब कि हत्याएँ उचित हैं लेकिन बहस के लिए स्थान बचा ही नहीं है।

भगत सिंह जब कहते हैं कि "धर्म के उपदेशकों और सत्ता के स्वामियों के गठबन्धन से ही जेल, फांसी, कोड़े और ये सिद्धान्त उपजते हैं", तो वह सबके निशाने पर होते हैं। अब सोचिए कि अगर भगत सिंह आज यह बोल दें, तो उन्ही के फोटो लगाकर उन्माद में अंधे लोग उनकी क्या हालत करेंगे। यही राजनीति है। वह सुविधानुसार अपने नायकों को इस्तेमाल करती है।

भगत सिंह का सम्पूर्ण चिंतन साम्यवाद पर आधारित है। वह मार्क्स को मानते थे। हालांकि उन्होने लेनिन को सच्चे नेता के तौर पर  मान्यता दी जिन्होंने बोल्शेविक क्रांति को सफलता पूर्वक अंजाम दिया था। आज भगत सिंह होते तो उनके इन विचारों पर क्या प्रतिक्रिया होती, आप खुद अंदाजा लगाइए।

एक सबसे महत्वपूर्ण बात.... भगत सिंह का मानना था कि अध्ययन करो, तर्क विकसित करो और फिर तर्क के आधार पर अपना दर्शन निर्मित करो।

उनकी नजर में धर्म, राजनीति और समाज में व्याप्त बुराइयों का सबसे बड़ा कारण है। आज भी  दलित वर्ग की हालत पर उनके विचार सत्ता को विचलित कर सकते हैं। यही वजह है कि भगत सिंह की तस्वीरें आप तक भेजी जाएँगी, लेकिन उनके विचार उन्हीं तस्वीरों के नीचे दबा दिए जाएँगे, क्यूँकि अगर वो आप तक पहुँच गए तो आप इस सत्ता के लिए सबसे बड़ा खतरा होंगे। आप तथाकथित देशद्रोही होंगे।।

अब एक अपील अपने सभी दोस्तों से.... कि साथी...आप जब भी भगत सिंह का नाम लें या उन के नाम पर नारें लगाएँ, अपने मन की तहों को खोलकर सोच जरूर लीजिए  कि आप कहाँ खड़े हैं। क्या आप उनके विचारों के साथ खड़े हो सकते हैं? अगर हाँ तो धर्म के नाम पर छीछालेदर करने वाले लोग भगत सिंह के विचारों वाहक नहीं हो सकते।

"ईश्वर में विश्वास रखने वाला हिन्दू पुनर्जन्म पर राजा होने की आशा कर सकता है। एक मुसलमान या ईसाई स्वर्ग में व्याप्त समृद्धि के आनन्द की और अपने कष्टों और बलिदान के लिए पुरस्कार की कल्पना कर सकता है। किन्तु मैं क्या आशा करूं? मैं जानता हूँ कि जिस क्षण रस्सी का फन्दा मेरी गर्दन पर लगेगा और मेरे पैरों के नीचे से तख्ता हटेगा, वह पूर्ण विराम होगा।" यह भगत सिंह का कथन है। पढ़िए और फिर विचार कीजिए।

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